संघर्ष से नेतृत्व तक : पार्वती तिवारी की अद्भुत जीवन यात्रा
पत्रकारिता से राजनीति तक का सफर, समाजसेवा को बनाया जीवन का उद्देश्य
महिलाओं और असहायों की आवाज़ बनीं पार्वती तिवारी
संघर्ष, शिक्षा और समर्पण से राजनीति में बनाई खास पहचान
बिहार राज्य के रक्सौल निवासी पार्वती तिवारी का जीवन संघर्ष, समाजसेवा और समर्पण की अद्भुत मिसाल है। 1993 में शिवपुरी हरैया थाना क्षेत्र के भरतमही गांव में जन्माष्टमी के दिन जन्मी पार्वती ने बचपन से ही कठिनाइयों का सामना किया। जब वह मात्र 12 वर्ष की थीं और कक्षा 9 में पढ़ रही थीं, तभी उनके पिता का देहांत हो गया। तीन बहन और तीन भाइयों में दूसरे नंबर पर रहते हुए पार्वती का पालन-पोषण उनकी माता ने किया।
शिक्षा और पत्रकारिता का सफर
पार्वती तिवारी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा काठमांडू से प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने नोएडा की अमेठी यूनिवर्सिटी से मास्टर डिग्री हासिल की। उन्हें एंकरिंग और पत्रकारिता का गहरा शौक था। यही कारण रहा कि उन्होंने पूरे 8 वर्षों तक टीवी चैनलों में पत्रकारिता की और समाज की सच्चाई सामने लाने का काम किया।
लेकिन पत्रकारिता करते हुए उन्हें अनुभव हुआ कि कई बार “न्याय दिलाने में पत्रकार की कलम टूट जाती है।” इसी सोच ने उन्हें समाज के लिए राजनीति का रास्ता अपनाने की प्रेरणा दी।
राजनीति में 2 वर्ष से सक्रिय
पार्वती तिवारी ने भारतीय जनता पार्टी से राजनीति का सफर शुरू किया। शुरुआती छह माह तक साधारण सदस्य के रूप में कार्य किया और उसके बाद महिला मोर्चा से जिला सोशल मीडिया प्रभारी का दायित्व मिला। मेहनत और लगन को देखते हुए उन्हें वर्तमान में महिला महामंत्री के पद पर कार्य करने का अवसर प्राप्त हुआ है।
उनका कहना है कि शुरूआती दिनों में राजनीति से दूरी थी, लेकिन सामाजिक कार्यों से जुड़ाव ने उन्हें यह सोचने पर मजबूर किया कि राजनीति के माध्यम से ही असहायों और महिलाओं की आवाज़ को सही मंच मिल सकता है।
समाजसेवा को बनाया उद्देश्य
पार्वती तिवारी का मानना है कि उनका जीवन समाज की सेवा के लिए समर्पित है। उनकी बड़ी बहन प्रवचन करती हैं, जबकि उन्होंने राजनीति का मार्ग चुना। पार्वती कहती हैं –
“पत्रकारिता से मैंने समाज की आवाज़ उठाना सीखा, और राजनीति से मैं उसे मुकाम तक पहुंचाने का प्रयास कर रही हूँ।”
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